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Delhi, India
A no-one moving towards no mind

Saturday, 5 August 2023

" बाकि है सांसें तुझमे "

" बाकि है सांसें तुझमे "

 

जब उखड रही थी सांसें मेरी

 और छाती का पत्थर चट्टान हो चला था

एक अंधकार से दूसरे अंधकार और जीवन के तिलिस्म

में तैर रहा था

दूर कहीं भीतर से आयी थी एक आवाज़

अभी बाकि हैं सांसें तुझमे

कुछ काम है तेरे बाकि

अभी बाकि है कुछ ज़िन्दगी

आज तेरा वक़्त नहीं

पर आज वक़्त है तेरा

 

अँधेरा  तो जल्दी टूटा

पर दूर से आती आवाज़ बढ़ती गयी

कुछ बाकि है काम मेरे

पिता से दिन में झगड़ना है बाकि

और संध्या होते ही मित्र बनाना है बाकि

माँ के अपर प्रेम से उचट जाना

फिर अपने आप को माफ़ करना है बाकि

जो प्रेम से रहे अछूते

उन्हें करना है सरोबार है बाकि

अंश को मेरे , अंश देना है बाकि

कुछ और बच्चो को दोस्त बनाना है बाकि

मित्रों के साथ अपनी बेवकूफियों पर

ठहाके  और लगाना है बाकि

 

जीवन भर का युद्ध इस  ब्राह्मण

को समझ नहीं आया

पराजय की दृश्टिकोण बदलने की क्षमता से

 विजित हमेशा वंचित रहा 

पर  मैं तो हमेशा हारा ही हूँ

 लगता है इस बार जीतना था बाकि

 

जब प्राण पखेरू हो रहे थे

और उखड रही थी सांसें मेरी

कानो में गूंजती अब भी वो आवाज़

अभी बाकि है कुछ ज़िन्दगी

अभी बाकि है कुछ काम तेरे

अभी बाकि है सांसें तेरी


Written:  May 22, After getting surviving a near fatal attack of Covid Ph2 in Apr 22


 

 

 

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