पैदा
हुआ एक ख्याल
उपजी कुछ
पंक्तिया कुछ नाकारी
, कुछ रखी उलटी , पलटी,
परखी परखा फिर
ख्याल सहताता,गुदगुदाता पुचकारता ख्याल
मेरे अकेलेपन
में मेरा पसंदीदा
ठहराव याद दिलाता
ख्याल एक निर्धन
का समय
समर्पण स्वीकार लो WRITTEN :APRIL 2003 |
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