About Me

Delhi, India
A no-one moving towards no mind

Thursday, 1 May 2025

आज फिर

 


 

 

आज फिर, एक उम्र के बाद

मैं अकेला था और

जिंदगी एक रंगहीन पर्दे

पर दौड़ गयी

समय लगा मुट्ठी भर रेत

जैसे मेरे हाथ

से ख़िसक गया

सड़क लम्बी और सपाट

हरियाली विहिन

जहन में कई सवाल

कई जवाब

गला कई बार भारी

आंखें उतनी बार नम

अपने आप को

महसूस किया

इस प्रकृति में

एक कण बहुत छोटा

एक उम्र के बाद

आज कहीं पहुंचने का

कोई इंतज़ार नहीं था 


WRITTEN :NOV 2000 JAISALMER

 

 

 

2 comments:

Dushyant said...

Jindagi ka poora falsafa, jaddojahad kuchh hi sabdon mai samet liya hai

randomlyDeepak said...

Dhanyavad