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Delhi, India
A no-one moving towards no mind

Thursday, 1 May 2025

सवाल


                                                                        

दिमाग में उठा एक सवाल

कौन हो तुम

जो रहती हो हमेशा

मेरे दिल के पास

कोई परी, अप्सरा या

मेरे सपनो की रानी

सवाल पर सवाल

क्यो आयी हो पास ?

क्या है काम ?

मैं तो हूँ आदमी नाकाम क्या

क्या आऊंगा काम ?

फिर कई सवाल

क्यों कम होती है दूरियाँ

क्यो लगता है ?

स्पर्श तुम्हारा सुहाना

क्यो आती हो ?

तुम सपनों में

क्यो सोचता हूँ तुम्हे ?

क्यो लगता है ?

कि तुम , तुम नहीं

तुम मैं हो

सवाल ही सवाल

मिले न कोई जबाब

सुबह दिन शाम

सपनो, दिलों दिमाग पर

फिर बड़ा समय

साथ बड़ा मैं

बरसाती पहाड़ी सड़क

पर सवालों कोहरा छंठा


फिर पता चला

तुम तुम नहीं

तुम मैं नहीं

तुम इन पहाड़ों के बीच

हरी घास के साथ

बो शांत झील हो

जहाँ मैं सोता हूँ

तुम उस मकान का

 दरवाज़ा हो

जो मेरा घर है

बो किताब हो

जिसे पाकर मैं

सब भूल जाता हूँ

घने जंगल

मैं वो झोपड़ी हूँ

जो नदी किनारे है

मदिरा का वह 

स्वाद हो

जो जीवा पर नाचता है

उस ग़ज़ल का पहला शेर

सुन कर जिसे आँखें

बंद हो जाती है

तुम मेरा सब कुछ

मेरा वह खेल

जिसे में पालना चाहता हूँ

तुम मेरे हो


WRITTEN :AGES AGO

 

 

 

 

आज फिर

 


 

 

आज फिर, एक उम्र के बाद

मैं अकेला था और

जिंदगी एक रंगहीन पर्दे

पर दौड़ गयी

समय लगा मुट्ठी भर रेत

जैसे मेरे हाथ

से ख़िसक गया

सड़क लम्बी और सपाट

हरियाली विहिन

जहन में कई सवाल

कई जवाब

गला कई बार भारी

आंखें उतनी बार नम

अपने आप को

महसूस किया

इस प्रकृति में

एक कण बहुत छोटा

एक उम्र के बाद

आज कहीं पहुंचने का

कोई इंतज़ार नहीं था 


WRITTEN :NOV 2000 JAISALMER